ArpitGarg's Weblog

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ठर्कीपन

with 2 comments

बात है उस दिन की, पैदा हुआ था मैं,
सफ़ेद लिबास में पुचकार रही थी वो,
उम्र न देखी, वक़्त न देखा, बस ली फिर्की,
नर्स को ही देखकर हो गया मैं ठर्की|

नर्सरी क्लास का है किस्सा यह,
आगे की कुर्सी पे बैठी थी वो,
खींच दी आहिस्ता से चोटी उसकी,
उसकी नन्ही जुल्फों में उलझा ये ठर्की|

चौथी कक्षा की टीचर जी,
हर बच्चा उन पे मरता था,
कितनों से लड़ा, कितनी तोड़ी बत्तीसी,
ब्लैक बोर्ड की लिखाई ने कर दिया ठर्की|

स्कूल के मास्टर की कोचिंग जाता था,
कुछ अपनापन था वहां, दिल को भाता था,
नंबर अब जो भी दे वो, बेटी भा गयी मास्टर की,
फेल और पास क्या जाने, यह मन तो है ठर्की|

बचपन का दोस्त था जो, एक दिन बोला वो,
नीले दुपट्टे में आई है जो, दिल ले गयी मेरा,
कहने को भाभी होनी थी, पर मर्जी इश्वर की,
समझा लूँगा दोस्त को मैं, न समझे ये दिल ठर्की|

कम्पटीशन का पेपर देने बैठा था, आर या पार,
दो सीट आगे बैठी थी, दिल हुआ बेकरार,
सलेक्श हो जाएगा अगले साल सही,
आज जी भर के देखूं उसको, हो कर ठर्की|

ऑफिस में तो सुधर जा अब, सीधा बन,
शिकायत करेगी, जायेगी नौकरी, होगी कुर्की,
जान दे, दूसरी मिल ही जायेगी नौकरी तो,
आज रोका तो बुरा मान जाएगा दिल ठर्की|

बचपन में सीखा था मैंने,
कैसा भूल गया यह ज्ञान,
अब ना भूलूंगा जीवन भर,
हर दिन जाप करूंगा, जी कर, मर कर|

इश्क में पड़ेगा तो जान से जाएगा,
ऐसा घुसेगा, पानी नहीं पायेगा,
जूतों से पिटवाएगी यह लड़की,
नज़र रख सीधी, मत बन ठर्की||

2 Responses

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  1. as usual .. another a “good” work … go on tharki! 🙂

    Monil Khare

    June 10, 2011 at 12:39 pm


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