चुनावी हवा
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
जनता ने पूछा कि कहाँ गया विकास,
तुमको देना होगा २२ साल का हिसाब,
ये सुन, झांके बगलें, ढूंढें जुमला साहब|
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
जनेऊ पहन मंदिर जाने की लगी दौड़,
तिलक लगा के शहर भर में छा गया,
हो जाओ बगल, नया पुजारी आ गया|
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
चौबेजी बनने चले जो, छब्बे भी न बन पाए,
हुंकार जो मिलकर बोली आंदोलन की,
सत्ता के विष ने, सबको जा लीला|
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
क्या चाचा भतीजा, क्या बेटा क्या बाप,
अपना सुख नापें, सब आपों आप,
हाथ किसी के न आया कुछ भी|
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
वादा था, सब घोटालेबाज जाएंगे जेल,
पर शब्दों का मोल सत्ता ने हल्का नापा,
सब एक ही है परिवार, बच्चे मम्मी पापा|
चुनावी हवा कुछ ऐसी चली पिछले दिनों,
जितना कर लो विश्वास, टूटना ही है आखिर,
सत्ता के सब भूखे हैं, आत्मा से सब सूखे हैं,
है रीत पुरानी सदियों से, क्यूँ रोये तू||
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