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असमंजस

with 2 comments

एकटकी लगाये दूर कहीं,
बैठा रहता हूँ दिन-दिन मैं,
कहाँ से जाने आ धमका,
जीवन में इतना असमंजस|

है सोच वही, न कोई नयी
बातें भी वही बस घिसी-पिटी
दोहरा के कहीं, दोहरा के कहीं,
जीवन में बसरा असमंजस|

सुबह को उठा, रात सोया,
रहता हूँ कुछ खोया खोया,
माथे पे शिकन, सीने में चुभन,
जीवन में उलझा असमंजस|

जिस रात से प्यार हुआ था कभी,
वो रात काली लगती है मुझे,
ख्वाब दुस्वप्न में कब बदले,
जीवन में सोचूँ असमंजस|

हर हवा सुहानी लगती थी,
हर महक दीवानी लगती थी,
क्यूँ सांस भी न अब ले पाऊँ.
जीवन में छाया असमंजस|

उन पलों में जाने अटका क्यूँ,
जो बीत चुके हैं जीवन के,
कैसे पर इनसे लड़ पाऊँ,
जीवन में आया असमंजस|

कभी हुआ नहीं यह पहले था,
इसलिए अजीब सा लगता है,
कब तक सोचेगा, अब बस कर
जीवन तो है ही असमंजस||

Written by arpitgarg

December 9, 2013 at 12:30 am

Posted in Hindi, Poetry

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2 Responses

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  1. अच्छे कविता है, एक बहुत अच्छा है।

    mikialkennethmillard

    December 9, 2013 at 12:43 am


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