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एक याद पुरानी आयी मुझे

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एक याद पुरानी आयी मुझे,
एक किस्सा भूली बातों का,
जब चाँदनी छन-छन रोशन,
औ गुस्ताखी माफ़ आखों की|

नज़रों के पहरे साफ़ हुए,
चुनरी में लागे दाग हुए,
चादर का कोना ओढे वो,
संग गिनती करते पूरे सौ|

छुप छुप के मिलना सब से,
पहरों का ओझल आँखों में ,
बातें भी ख़तम ना होती थी,
रातें भी सितम न खोती थीं|

उन उलझे उलझे बालों से,
उन लाल लजाते गालों से,
खिड़की पे बैठे सवालों से,
एक याद पुरानी आयी मुझे| |

Written by arpitgarg

August 10, 2020 at 4:17 am

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एक साल बीत गया

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कल की सी तो ही बात है,
जब हम सब पढ़ने आये थे,
सपने कितने इन आँखों में,
झट एक साल बीत गया|

अमरीका ठंडा देश सुना था,
गर्मी इतनी क्यों आते ही?
आधा सामान खोला भी ना,
झट एक साल बीत गया|

दोस्त नए, रिश्ते बुने नए,
कई स्थायी जीवनभर के,
कई सीमित उबर पकड़ने तक,
झट एक साल बीत गया|

दारु शारु, पार्टी शॉर्टी हुई,
नेटवर्किंग में सब उतर गयी,
कितना सीखा, कितना पाया,
झट एक साल बीत गया|

साथ पढ़ाई, संग त्यौहार,
टैवर्न जाना हर मंगलवार,
गर्म, सर्द, बारिश बौछार,
झट एक साल बीत गया|

कल की सी तो ही बात है,
जब हम सब पढ़ने आये थे,
सपने कितने इन आँखों में,
झट एक साल बीत गया|

Written by arpitgarg

July 27, 2018 at 2:06 am

Posted in Hindi, Poetry

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अंत करो

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love1

मैं तो आखिर एक पंछी था,
जिसके पर थे कुतर चुके,
पिंजरे को घर था मन किया,
आह की चाह की टीस जिया,
पर तू ओ जालिम आयी क्यों,
अपने संग आस ये लायी क्यों,
अब पशोपेश में उलझा मैं,
कोई आये इसको सुलझा दे,
तब तक बैठा मैं तड़प रहा,
या शुरू या इसका अंत करो|

Written by arpitgarg

January 23, 2018 at 2:32 am

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धूमिल शाम वो

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थकी हुई सी शाम थी वो,
जब देखा था तुझको मैंने,
पागल सी, झबराई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

बात बात में गुस्सा होना,
कभी पूरा, या आधा पौना,
हर लहजे में तेरे लड़ाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

आँखों में डाल आँखें मैंने,
जब दिल की बात बताई थी,
तू जरा भी ना शर्मायी थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

पागलपन औ सनकपन में,
अपनी ही लत, अपनी ही हट.
दिमाग की तूने हटाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

रोते रोते, हँसते हँसते,
आस पास, कभी दूर-दूर,
परेड मेरी करवाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

हाँ ना में औ ना हाँ में,
कभी सुलझन, कभी उलझन,
सांसें मेरी अँटकायी थी,
पर मेरे मन को भाई थी।

राह कठिन, चाह अडिग,
कट ही गया, काफी रस्ता,
भूला ना धूमिल शाम वो मैं,
जब मेरे मन को भाई थी।।

Written by arpitgarg

November 30, 2016 at 2:57 pm

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माशाअल्ला

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नयनों में सुरमा लगाए जब,
तीर सा कुछ चल जाता है,
बढ़ती है धड़कन दिल की,
तू लगती है माशाअल्ला।

लाली ओठों की कुछ ऐसी,
मादक मंद मुस्काती है,
सांस मेरी थम जाती है,
तू लगती है माशाअल्ला।

हिरनी जैसी चाल तेरी जो,
करती मौसम अस्त व्यस्त,
मैं भँवरा बन मंडराता हूँ,
तू लगती है माशाअल्ला।

काले घने जब केश तेरे,
बन बादल घिर आते हैं,
लगता जैसे सावन आया,
तू लगती है माशाअल्ला।

माथे मुख पे श्रृंगार तेरा,
आभा एक झलकती है,
हो मंत्रमुग्ध मैं बस देखूं,
तू लगती है माशाअल्ला।

हाथ में जो कंगन डाले,
खन-खन खनक जाते हैं,
अंतर्मन मधुर ध्वनी चहके,
तू लगती है माशाअल्ला।

सौंदर्य से भी कुछ ज्यादा,
है मन में मेरे अक्स तेरा,
बंद आँखों से दिख जाता है,
तू लगती है माशाअल्ला।।

Written by arpitgarg

May 6, 2016 at 3:14 pm

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कोई आस है वापस आने की

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एक दर्द दबाए बैठा हूँ,
सीने में चुभन सी होती है,
दूर तेरे चले जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक तूफ़ान समाये बैठा हूँ,
मन में उफ़न सी होती है,
श्रृंगार की बेला जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक राज छुपाए बैठा हूँ,
ओठों पे कशिश सी होती है,
क्षितिज पार न देख पाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक आह समेटे बैठा हूँ,
आँखों में टीस सी होती है,
झर-झर मोती बह जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक स्वप्न संजोए बैठा हूँ,
रातों को करवटें होती हैं,
नींद मेरी खुल जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक आग लगाए बैठा हूँ,
हर अंग तपन सी होती है,
भस्म इसमें हो जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

एक सांस को थामे बैठा हूँ,
भीतर से घुटन सी होती है,
ईश्वर से जा मिल जाने की,
कोई आस है वापस आने की?

Written by arpitgarg

April 26, 2016 at 10:12 am

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हाँ तू ही है

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सपने में रात जो आती है,
हर दिन मेरी नींद चुराती है,
सताए मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

इठलाती है, शर्माती है,
औ मंद मंद मुस्काती है,
मचलाए मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

लाल गाल औ मस्त चाल,
बन्दर मन होता, डाल डाल,
बहकाए मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

लड़ती है और लड़ाती है,
पूरे घर को सर पे उठाती है,
गुस्साए मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

मेरे ख़ुशी में झूमती मस्त,
दुःख में बंधाती ठांठस है,
समझाए मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

बचपने में साथ मेरा जो दे,
सारा शहर रंगे वो संग मिल के,
साथ है जो, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

रोज के सूखे जीवन में,
धूमिल न वो हो जाये कहीं,
महसूस मुझे, जाने कौन है वो,
तू ही तो है, हाँ तू ही है।

Written by arpitgarg

April 14, 2016 at 3:04 pm

Posted in Hindi, Prose

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नींद ना आई सारी रात

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insomnia

दीदारे यार कुछ ऐसा हुआ,
फ़िज़ा में छायी कुछ ऐसी बात,
औ चाँद की चांदनी अजीब,
मुझे नींद ना आई सारी रात।

छन छन के रौशनी जो आई,
तेरे मुख को छूकर जाने को,
हिमाकत ये न करी मैंने रास,
मुझे नींद ना आई सारी रात।

भौंरा तभी देखा खिड़की पे,
चीरता हुआ रात का सन्नाटा,
किया रवाना समझाकर उसे,
मुझे नींद ना आई सारी रात।

बिजली चली गयी, हवा बंद,
तेरे माथे पे पसीना आ बैठा,
सिरहाने तेरे करता रहा हवा,
मुझे नींद ना आई सारी रात।

कोशिश सोने की कई बार करी,
पर तुझसे नज़र न मेरी हटी,
देखता रहा तुझे, थाम तेरा हाथ,
मुझे नींद ना आई सारी रात||

Written by arpitgarg

March 6, 2016 at 11:19 pm

Posted in Hindi, Poetry

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ढाई किलो आलू और प्याज

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भूख लगी मुझे आधी रात को,
सोचा रसोई में रखा हो कुछ,
नहीं मिला कुछ, पड़ा था बस,
ढाई किलो आलू और प्याज।

नींद भी थी और भूख भी थी,
कुछ मिल जाए जल्दी से बस,
पेट की आग बुझाएं कैसे ये,
ढाई किलो आलू और प्याज।

कुकर चढ़ाने को हुआ जो मैं,
देखा कि थी सीटी नदारद,
खाना नहीं मिल पायेगा आज,
ढाई किलो आलू और प्याज।

छीलूं कैसे अब आलू को मैं,
चाकू कहीं जो मुझे न मिलता,
थक गए पेट के चूहे भी नाच,
ढाई किलो आलू और प्याज।

कच्ची प्याज ही खा जाऊं क्या?
ऊपर से पी पानी भर गिलास,
इस व्यंजन पर मुझे नहीं है नाज,
ढाई किलो आलू और प्याज।

बनाऊं दो प्याज़ा या आलू दम,
भूख नहीं दिख रही होती कम,
कुछ है गड़बड़, गहरा है राज,
ढाई किलो आलू और प्याज।

मुहँ में पानी, महक और स्वाद,
मेरे अंदर का भुक्कड़ मुखर,
सपने भी आते खाने के अब,
ढाई किलो आलू और प्याज।

Written by arpitgarg

February 21, 2016 at 2:40 am

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पूछो तो बतला दूँ मैं

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घुट घुट कर के जीना जैसे,
छुप छुप कर के रोना है,
पा कर सबकुछ खोना क्या?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

आहट की राहत है क्या,
उसके चौखट पे आने की,
आँखों पे नमी की चादर क्यों?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

बदल करवटें कटती रतियाँ,
पलछिन, लगे जैसे सदियाँ,
आवाज क्यों अटकी हलक तले?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

खोजा तुझे मैंने कहाँ कहाँ,
बनके फ़कीर माँगा करता,
दिल बन पत्थर टूटा कैसे?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

मैं सिसक सिसक के रोया हूँ,
पर आसूँ न आने दिए कभी,
क्या कसम तेरी मैं खा बैठा?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

न दवा मिले, न दुआ सरे,
अंतर्मन अलग ही सुलग रहा,
है दर्द भरा क्या मन में मेरे?
पूछो तो बतला दूँ मैं।

शून्य को बैठा रहा ताक,
नापाक हुआ, न रहा पाक,
जो मन में दबाये बैठा हूँ,
पूछो तो बतला दूँ मैं।

Written by arpitgarg

February 19, 2016 at 1:53 am

Posted in Hindi, Love, Poetry

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