बच्चा पहले ही मर गया था
मेरा बचपन आगरा शहर में बीता है। दिल्ली की कड़ाके की सर्दी क्या होती है, मैंने महसूस करी है। रूह कंपा देती है। जल्द से जल्द घर पहुंचकर रजाई में दुपक जाता था। बेघर लोगो बेचारे ऐसी सर्दी में क्या करते होंगे, बचपन में यह ख़याल कभी नहीं आया। बड़ा होकर पाया की उनमें से काफी लोग, सर्दी में दम तोड़ देते हैं।
जो दिल्ली में हुआ, ऐसा नहीं है की यह पहली बार हुआ है हमारे देश में। ऐसी तोड़फोड़ पहले भी होती रही है जगह खाली कराने के लिए। अतिक्रमण हटाना। मुझे कभी इसका मतलब समझ नहीं आया। यहाँ से भागो, कहीं और जाके मारो। मुझे बस इतना ही समझ आता है।
मुझे दुःख इसलिए ज्यादा है, कि मुझे लगा था की मोदीजी सबसे आगे खड़े होंगे, इन गरीबों को बचाने के लिए। भारत सरकार ने बोला, “बच्चा पहले ही मर गया था”, तोड़फोड़ बाद में हुई। मान लो २ मिनट की बच्चा पहले मर गया था। तो इससे ज्यादा भीषण रूप कुछ और नहीं हो सकता, कि जिसके घर में मौत हुई, उसका घर उजाड़ा गया।
मैं शर्मसार हूँ, ऐसे तंत्र का हिस्सा होने पे। जमीन तो भगवान ने बनायी थी, कबसे रेलवे की जागीर हो गयी। कौनसे वो बेचारे शौक से झुग्गी में रहते थे? विकास के नाम पे सबको रौंदते चलो।
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