प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं
सुना बहुत था, जाना नहीं,
यह एहसास होता बड़ा हसीं,
लगा था बस कहकहा यही,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
हम जीते हैं औ मरते हैं,
जीवन हैं क्यों यह नहीं पता,
मरने से पहले हो एक बार,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
कभी बातों बातों में हो जाता है,
कभी सर्द रातों में हो जाता है,
होता है तब कहता है दिल,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
जो लगते थे खंडर उजाड़,
उनमें रंग जैसे भर जाते हैं,
औ हमसे यह कह जाते हैं,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
समय थम सा कुछ जाता है,
पल सब पल-छिन हो जाते हैं,
हर टिक टिक बस यही सन्देश,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
हर सपने सच्चे लगते हैं,
बेगाने भी अपने लगते हैं,
खुद बचा मर ना जाऊं कहीं,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
पर क्या यह सब सच्चा है?
या पल भर का एक गच्चा है?
पता चलता सबको है खुद ही,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।।
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