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एक याद पुरानी आयी मुझे
एक याद पुरानी आयी मुझे,
एक किस्सा भूली बातों का,
जब चाँदनी छन-छन रोशन,
औ गुस्ताखी माफ़ आखों की|
नज़रों के पहरे साफ़ हुए,
चुनरी में लागे दाग हुए,
चादर का कोना ओढे वो,
संग गिनती करते पूरे सौ|
छुप छुप के मिलना सब से,
पहरों का ओझल आँखों में ,
बातें भी ख़तम ना होती थी,
रातें भी सितम न खोती थीं|
उन उलझे उलझे बालों से,
उन लाल लजाते गालों से,
खिड़की पे बैठे सवालों से,
एक याद पुरानी आयी मुझे| |

धूमिल शाम वो
थकी हुई सी शाम थी वो,
जब देखा था तुझको मैंने,
पागल सी, झबराई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
बात बात में गुस्सा होना,
कभी पूरा, या आधा पौना,
हर लहजे में तेरे लड़ाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
आँखों में डाल आँखें मैंने,
जब दिल की बात बताई थी,
तू जरा भी ना शर्मायी थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
पागलपन औ सनकपन में,
अपनी ही लत, अपनी ही हट.
दिमाग की तूने हटाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
रोते रोते, हँसते हँसते,
आस पास, कभी दूर-दूर,
परेड मेरी करवाई थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
हाँ ना में औ ना हाँ में,
कभी सुलझन, कभी उलझन,
सांसें मेरी अँटकायी थी,
पर मेरे मन को भाई थी।
राह कठिन, चाह अडिग,
कट ही गया, काफी रस्ता,
भूला ना धूमिल शाम वो मैं,
जब मेरे मन को भाई थी।।
नींद ना आई सारी रात
दीदारे यार कुछ ऐसा हुआ,
फ़िज़ा में छायी कुछ ऐसी बात,
औ चाँद की चांदनी अजीब,
मुझे नींद ना आई सारी रात।
छन छन के रौशनी जो आई,
तेरे मुख को छूकर जाने को,
हिमाकत ये न करी मैंने रास,
मुझे नींद ना आई सारी रात।
भौंरा तभी देखा खिड़की पे,
चीरता हुआ रात का सन्नाटा,
किया रवाना समझाकर उसे,
मुझे नींद ना आई सारी रात।
बिजली चली गयी, हवा बंद,
तेरे माथे पे पसीना आ बैठा,
सिरहाने तेरे करता रहा हवा,
मुझे नींद ना आई सारी रात।
कोशिश सोने की कई बार करी,
पर तुझसे नज़र न मेरी हटी,
देखता रहा तुझे, थाम तेरा हाथ,
मुझे नींद ना आई सारी रात||
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं
सुना बहुत था, जाना नहीं,
यह एहसास होता बड़ा हसीं,
लगा था बस कहकहा यही,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
हम जीते हैं औ मरते हैं,
जीवन हैं क्यों यह नहीं पता,
मरने से पहले हो एक बार,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
कभी बातों बातों में हो जाता है,
कभी सर्द रातों में हो जाता है,
होता है तब कहता है दिल,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
जो लगते थे खंडर उजाड़,
उनमें रंग जैसे भर जाते हैं,
औ हमसे यह कह जाते हैं,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
समय थम सा कुछ जाता है,
पल सब पल-छिन हो जाते हैं,
हर टिक टिक बस यही सन्देश,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
हर सपने सच्चे लगते हैं,
बेगाने भी अपने लगते हैं,
खुद बचा मर ना जाऊं कहीं,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।
पर क्या यह सब सच्चा है?
या पल भर का एक गच्चा है?
पता चलता सबको है खुद ही,
प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं।।
Five days a week
Wake up morning aimless,
News and shit, lameness,
Often it plays, hide n seek,
I do this, Five days a week.
Jog and sweat, calmness,
Shower and clean, freshness,
Jazz a bit, hair and cheek,
I do this, Five days a week.
Milk and Cereal, Munching,
Fruits a few, pack lunching,
Sometimes salad, fresh Greek,
I do this, Five days a week.
Stroll to office, oh so slow,
Some hot, some cold, I blow,
To my seat, I quickly sneak,
I do this, Five days a week.
Login password, old routine,
Workspace, always find clean,
Keep sitting, till take a leak,
I do this, Five days a week.
Lunch time here, off I go,
Eat together, all my bro,
Bitch, snitch, plotting reek,
I do this, Five days a week.
By the evening, left no thrill,
Not got enough time to kill,
Next day feels equally bleak,
I do this, Five days a week.
पगली की याद
क्या तुमने मुझको याद किया,
जब तूने मुझसे पुछा उस दिन,
क्यों बोलूं झूठ, न याद किया,
पगली याद करूँ गर भूलूँ मैं।
बात कभी अब तुम न करते,
लगता है मुझसे ऊब गए हो,
ऊबने की बात है कहाँ से आई,
पगली दिलचस्पी पूरी ले तो लूँ।
मिलने को बुलाती, तुम न आते,
हर पल बस दूर ही भागे जाते,
अपनी दूरी कैसे बढ़ सकती है,
पगली पास तो पूरा आ जाऊं।
सुनते ही नहीं, मैं बड़-२ करती,
बिलकुल भी मुझपे ध्यान नहीं,
अरे सोचूँ मैं कुछ और तो तब,
पगली ध्यान से पहले हटे तो तू।
सजके सँवरके आई थी मैं,
एक स्वर भी प्रशंसा नहीं करी,
कितनी मैं करूँ तारीफ तेरी,
पगली हर रोज परी है लगती तू।
व्रत था तुम्हारे लिए रखना,
डांट के तुमने मना किया क्यों,
तू सुनती मेरी क्या डांट बिना,
पगली तुझे भूखा कैसे देख सकूँ।
क्या तुमने मुझको याद किया,
जब तूने मुझसे पुछा उस दिन,
क्यों बोलूं झूठ, न याद किया,
पगली याद करूँ गर भूलूँ मैं।।
वो रात
बहुत दिनों चली आंखों-२ में बात,
आज हो गयी सच में मुलाक़ात,
बहाने मिले, न ढूँढने पड़े,
तभी थे आमने सामने खड़े।
वो आई कपड़े पहनकर गुलाबी,
उसके कजरारे नैन लग रहे शराबी,
बड़ी मासूमियत से मुखवाणी निकाली,
है उसकी जुल्फें या घटा काली-काली।
आज लग रही वो सम्पूर्ण नारी,
पांडू के बाद हाय मेरी मती हारी,
कामदेव का बाण चल ही गया,
सारा संसार लगने लगा नया।
होने लगी पुष्प की वर्षा,
बजने लगी प्रेम की त्रिवेणी,
इतने दिनों का इंतज़ार,
कर रहा था हमें जार-जार।
लगा था जैसे बीती हों सदियाँ,
बहने दो आज स्नेह की नदियाँ
बंधे सारे तार, झुके सारे नैन,
दिल को करार औ हृदय को चैन।
दो जिस्म एक हो ही गए,
दोनों के नयन भी एक हुए,
उसके गाल पर काला तिल,
बन ही गया हमारा दिल।।
दिल
कितना कुछ पाया तूने,
सब कुछ क्यों अब खोता है,
सुख ही सुख है मुख पर,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
बातों ही बातों में जब,
रातें सब कट जाती हैं,
दिन खर्राटे भर सोता है,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
चिंताएं हुई सब खाख खाख,
अंतर्मन भी अब पाक पाक,
अमृत की खेप को जोता है,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
खिला चाँद, छन छन रोशन,
हर कोना कोना होता है,
चांदनी में भीगा मन तेरा,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
मादक मदहोशी छायी है,
यौवन मद-मस्ती आई है,
रूहानी शाम का न्योता है,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
सुन्दर स्वच्छ निर्मल शीतल,
जैसे प्रयाग में लिया गोता है,
धुले पाप सब, मुक्त हुआ अब,
पर दिल जाने क्यों रोता है।
कोई बात है जो टीस रही,
जाने अनजाने कुछ तो हुआ,
समझ कुछ नहीं आता है,
औ दिल बस रोता जाता है।।
मुठ्ठी भर रेत
छोटी कभी, लम्बी कभी,
है जिंदगी भी कुछ अजीब,
सुलझी कभी, उलझी कभी,
कितनी दूर, कितनी करीब।
बदला मौसम, बादल छाए,
मझधार में नैया, गोते खाए,
पानी अँखियाँ, काली रतियाँ,
सब कुछ खोये, कुछ न पाये।
धड़कता दिल, चढ़ती सांस,
पीता पानी, लगती पर प्यास,
ऊपर से खुश, अंदर उदास,
चलती-फिरती जिन्दा लाश।
कैसी सी है दास्तां ये मेरी,
जाने क्यों हुई आने में देरी,
कहता रहता दिन औ रात,
बिखरे सपने, उजड़े जज्बात।
इस सपने का मोह न जाता है,
गम रह रह कर के आता है,
एक टीस सी अंदर उठती है,
खुद पर ही तरस आ जाता है।
अपने संग सबको दुखी किया,
हवा चली, बुझ गया दिया,
मुठ्ठी में जो दम ना था,
क्यों रेत समाने तू चला॥