ArpitGarg's Weblog

An opinion of the world around me

बेक़सूर दिल

leave a comment »

कभी इधर, कभी उधर,
भटकातीं है मन मेरा,
सब गलतियां करती हैं हूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।

खुद ने दिया इतना प्यार,
बाँट बाँट के थका हूँ मैं,
पर ख़त्म नहीं होता सुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।

दुनिया ने किया बदनाम मुझे,
तितलियाँ पकड़ता तो बचपन से था,
ठरकी थोड़ा मैं था ज़रूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।

आँखों से खिची चली आयीं,
इशारों तक बात नहीं आयी,
पर कभी मैंने न किया गुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।

चाह नहीं, ठहराव नहीं,
रुका नहीं मैं किसके लिए,
अपनी धुन में रहता मगरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।

मैखाने के पैमाने से,
कुछ कसर नहीं रखी बाकी,
आखिर कुछ तो बहकेगा,
इसमें दिल का मेरे क्या है कसूर।।

Written by arpitgarg

November 29, 2013 at 9:22 pm

Posted in Hindi, Love, Poetry

Tagged with , , , ,

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: