कोई आस है वापस आने की
एक दर्द दबाए बैठा हूँ,
सीने में चुभन सी होती है,
दूर तेरे चले जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक तूफ़ान समाये बैठा हूँ,
मन में उफ़न सी होती है,
श्रृंगार की बेला जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक राज छुपाए बैठा हूँ,
ओठों पे कशिश सी होती है,
क्षितिज पार न देख पाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक आह समेटे बैठा हूँ,
आँखों में टीस सी होती है,
झर-झर मोती बह जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक स्वप्न संजोए बैठा हूँ,
रातों को करवटें होती हैं,
नींद मेरी खुल जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक आग लगाए बैठा हूँ,
हर अंग तपन सी होती है,
भस्म इसमें हो जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
एक सांस को थामे बैठा हूँ,
भीतर से घुटन सी होती है,
ईश्वर से जा मिल जाने की,
कोई आस है वापस आने की?
Deep one!!
ssunshine14
April 26, 2016 at 11:57 am
Thnx
arpitgarg
April 26, 2016 at 1:58 pm
🙂
ssunshine14
April 26, 2016 at 2:42 pm