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बदिरा
केशव के काले कुंज से,
कहा था किशन की कुटीर से,
कब तक करोगे कोप कल्लोल,
काले केश से काले मेघों ने,
कबसे कहीं न काज किया,
कुपित हुए वे कलयुग के कर्मा के कर्मों से,
किसने क्या कर दिया,
कबसे कोख ने फल ना दिया,
काहे का ये कोप भवन,
काहे की ये कठिनाई,
कबसे कह रहे हैं कब आओगे,
काले केशों से कुछ कोमल बरसाओगे,
कोनों तक में कालिख छाई,
ज्ञान का कमरक पियो कृपाई,
कभी कुछ कुबेर के कानों में,
कूकेगी कोयल कूँ कूँ,
कुछ तो कवलित हो कठिनाई,
कह कुछ मत कर्म कर भाई|