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हकीकत

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दिल क्यों रो रहा है, मुझे नहीं पता। पसीज उठा हूँ मैं आज, न मालूम क्या करूँ। भाग जाऊं यहाँ से या सामना करूँ। यह हकीकत है जो भयानक रूप धारण कर मेरे सामने प्रकट हुई है।

यह रेलवे स्टेशन का दृश्य है। दिसम्बर की सर्दी भरी रात है। सुबह के चार बजे हैं। मैं इंजन की तरफ पीठ करके बैठा हूँ। पीछे से काफी शोर आ रहा है। वैसे तो कड़ाके की ठंड है, पर अचानक ही मुझे गर्मी लग उठी है। एक हाफ-स्वेटर में मुझे टनों ऊन की सी तपन महसूस हो रही है।

कारण? कारण है मुझे अपने सामने दिखती दरिद्रता जो नग्न्ता पर मजबूर हो रही है। एक छोटी बच्ची फूलों की सेज पर सोने के बजाए नंगे फर्श, पर गत्ते के डिब्बे का बिस्तर बनाये सो रही है। तन पर कोई गर्म वस्त्र नहीं, ओढे हुए है तो सिर्फ मोमजामा।

उसके सामने मैं खुद को गर्म चादर ओढे पाता हूँ। जो ठंड मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, अब महसूस ही नहीं हो रही। क्या यही हक़ीक़त का असर है? क्या है उस नन्ही सी गुड़िया का भविष्य? दूसरी तरफ मैं अपने आप को देखता हूँ। हर्षोल्लास करते हुए। मजे करते हुए। यह उचित है या अनुचित, मुझे नहीं पता। पर क्या हमें अपने आप से यह सवाल नहीं करना चाहिए, ऐसा क्यों?

क्या वह बच्ची भगवान की देन नहीं? क्या हम और वो बराबर नहीं? क्या हम एक ही मालिक की औलाद नहीं? मुझे पता है कि आप में से कुछ मुझ पर हँसेंगे। सोचेंगे नहीं। क्योंकि अभी तक आपने हकीकत को देखा तो है, पहचाना नहीं।

कृपया हक़ीक़त को जानें और आगे बढ़ें ताकि इस धरती पर से दुःख और दर्द मिट जाएँ और कुछ ऐसा समां बने जो हकीकत को सुनहरा बना दे।

Written by arpitgarg

March 28, 2008 at 11:28 am

बकरी

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एक मैला कुचैला छोटा बच्चा। उसके लिए जिंदगी का मतलब सिर्फ भूख और दुःख था। पटरी के किनारे बनी झोपडी ही उसका घर थी। लंगड़ी माँ ट्रैन मैं भीख मांगती थी। बड़ा भाई ट्रैन में झाड़ू लगाकर पैसे जुटाता था। कभी-२ दो वक़्त का खाना भी नसीब नहीं हो पाता था। इस सब दुःख दर्द में उसकी साथी थी, उसकी प्यारी बकरी। वह दिन भर उसके साथ खेला करता था। दोनों एक दूसरे को समझते थे। एक दिन खेलते-२ बकरी का पाँव पटरी पर फसी डोरी में अटक गया। उसी वक़्त सामने से ट्रैन आने लगी। बकरी चीख रही थी। बच्चे ने बकरी को देखा। वह डरा नहीं, दौड़ पड़ा। उसके मन में बस एक ही सवाल था कि आज वह यह नहीं होने देगा। वह पूरी रफ़्तार से दौड़ रहा था। लम्बी छलांग लगाकर उसने बकरी को पकड़ा और दूर झटक दिया। खुद दूसरी ओर कूद गया। कुछ ना होते हुए भी आज उसके चेहरे पर बड़ी चमक थी। आज वह विजेता था। उसने अनहोनी को टाल दिया था। वह यह दोबारा होने भी कैसे दे सकता था। उसे याद था कि कभी इस बकरी की जगह उसने अपने पिता को कटते देखा था।

Written by arpitgarg

March 28, 2008 at 11:27 am

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