ArpitGarg's Weblog

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मानेगा रब

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शाम थी कुछ अनजान,
थम सा गया था समां,
दूर कहीं एक अहाट थी,
दस्तक देने को तयार|

बेरंग जिंदगी थी जो मेरी,
तेरी नजरों को चुभ सी गयी,
हुई तभी से तू इसमें,
रंग भरने को तत्पर|

तेरी मुस्कराहट में ऐसा खोया,
आज तलक न मिल पाया,
डूब डूब कर मैं जानूं,
सच है, कोई ख्वाब नहीं|

परछाई से भी डरता था,
अब हठ कर ऐसा ऐंठा है,
बिन तेरे सब कुछ सून सून,
संग में ही जीवन जीना है|

गोभी का वो फूल नहीं,
दिल था मेरा जो तुझे दिया,
तू रूठ रूठ के मान गयी,
मैं मना मना कर थका नहीं|

एक झल्ली सी पहली बार लगी,
तेरी लट में, मैं अटक गया,
तब कमर पे तेरे हाथ रखा जो,
आज तक वहीँ रखा है देख|

कुछ गम था ऐसी बात नहीं,
कुछ कम था पर जज्बात सही,
कुछ नम फिर तेरे लिए हुआ,
कुछ थम गया, समय था वो|

तेरी गर्दन पे स्नेह किया,
प्यार से तू करहा थी गयी,
मीनू, रिंकू औ पिंकी सब,
जाने कब मेरे अपने हुए|

लबों की तेरी लाली थी,
मेरे लबों पर चमकी देख,
तेरे मुहं का स्वाद भी अब,
मुझको रह रहकर आता है|

साँसों की तेरी गरम हवा,
मेरी साँसों से टकराई जब,
झुक गए सारे नैन तभी,
सीने से तुझको लगा लिया|

छुपा ले अपने आँचल में,
यह दुनिया सब बेगानी है,
संग तेरे जो जीना पड़े मुझे,
वो जीवन मुझे बेमानी है|

एक बार जो थामा हाथ तेरा,
एक बार जो तुझको स्नेह किया,
अनंत तक न छूटेगा अब,
चाहें न मानें सब, मानेगा पर रब||

Written by arpitgarg

January 3, 2012 at 11:31 pm

Posted in Hindi, Love, Personal, Poetry

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