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पता चल न पाता कभी
दिल का धड़कना होता है क्या,
सांसें आखिर कैसे चढ़ जाती है,
नींद रातों की कैसे जाती है गुम,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी|
लटों की उलझन में फसना है क्या,
डूबकर आँखों में तैरते कैसे हैं,
मार खाने में आता है कैसा मज़ा,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी|
रात दिन, एक कैसे जाते हैं हो,
भूख लगती है, खा क्यों न पाते हैं हम,
एक चेहरे में पहर कैसे कट जाते हैं,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी|
रिश्ते नाते सब गैर लगते हैं क्यों,
क्यों बेगाना ज़माना ये हो जाता है,
प्यार भी सबका लानत क्यों लगने लगा,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी|
सर्द रातों की गर्मी में तपना है क्या,
चंद बातों में दुनिया का बसना है क्या,
चाँद तारे तोड़कर कैसे लाते हैं सब,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी|
इजहार-ऐ मोहब्बत होती है क्या.
कैसे दर्द-ऐ-जुदाई तड़पा जाती है,
प्यार का रंग खूनी लगता है क्यों,
तू न मिलती, पता चल न पाता कभी||
miao
जबसे गयी हो दूर
जबसे गयी हो तुम दूर, एक दर्द सा होता है,
होता है क्यों दर्द ये, है मुझे मालूम नहीं,
मालूम मुझे बस इतना है, कि नींद मुझे न आती है,
नींद कभी जो आ जाए, सपनों में याद सताती है||
दिन कटते हैं जैसे तैसे, रात काटने को आती,
कैसे काटूं रात ये दिन, मुझे समझ न आता है,
समझदार मैं था तो बहुत, पगला मैं बन बैठा हूँ,
बैठे बैठे, बस सोचूँ ये, किस्मत से मैं क्यों ऐंठा हूँ||
वो रास्ते, वो गलियाँ, जिनपर चलते थे हम तुम,
चलना भी दुष्वार हुआ, छाले क़दमों पे पड़ते हैं,
कदम मुझे ले जाते हैं, तेरे दरवाज़े की ओर,
दरवाज़े बंद पड़ जाते हैं, बिन तेरे किस्मत के||
तू जब थी बेहोश, वो पल लम्बे थे जीवन के,
एक बेचैनी छाई थी, तड़प रहा था मन ही मन,
तुझे कभी जो दर्द हुआ, चुभन मुझे महसूस हुई,
कब जाने ऐसा होने लगा, मुझसे पहले तू आने लगी||
वापस आजा जान तू अब, विरह सहन न होती है,
सहन जाऊंगा दुत्कार तेरी, पास जो तू मेरे होगी,
पास नहीं जो मेरे तू, जीवन जीने की आस नहीं,
इसी आस में बैठा हूँ, की आने वाली तू जल्दी है||
मानेगा रब
शाम थी कुछ अनजान,
थम सा गया था समां,
दूर कहीं एक अहाट थी,
दस्तक देने को तयार|
बेरंग जिंदगी थी जो मेरी,
तेरी नजरों को चुभ सी गयी,
हुई तभी से तू इसमें,
रंग भरने को तत्पर|
तेरी मुस्कराहट में ऐसा खोया,
आज तलक न मिल पाया,
डूब डूब कर मैं जानूं,
सच है, कोई ख्वाब नहीं|
परछाई से भी डरता था,
अब हठ कर ऐसा ऐंठा है,
बिन तेरे सब कुछ सून सून,
संग में ही जीवन जीना है|
गोभी का वो फूल नहीं,
दिल था मेरा जो तुझे दिया,
तू रूठ रूठ के मान गयी,
मैं मना मना कर थका नहीं|
एक झल्ली सी पहली बार लगी,
तेरी लट में, मैं अटक गया,
तब कमर पे तेरे हाथ रखा जो,
आज तक वहीँ रखा है देख|
कुछ गम था ऐसी बात नहीं,
कुछ कम था पर जज्बात सही,
कुछ नम फिर तेरे लिए हुआ,
कुछ थम गया, समय था वो|
तेरी गर्दन पे स्नेह किया,
प्यार से तू करहा थी गयी,
मीनू, रिंकू औ पिंकी सब,
जाने कब मेरे अपने हुए|
लबों की तेरी लाली थी,
मेरे लबों पर चमकी देख,
तेरे मुहं का स्वाद भी अब,
मुझको रह रहकर आता है|
साँसों की तेरी गरम हवा,
मेरी साँसों से टकराई जब,
झुक गए सारे नैन तभी,
सीने से तुझको लगा लिया|
छुपा ले अपने आँचल में,
यह दुनिया सब बेगानी है,
संग तेरे जो जीना पड़े मुझे,
वो जीवन मुझे बेमानी है|
एक बार जो थामा हाथ तेरा,
एक बार जो तुझको स्नेह किया,
अनंत तक न छूटेगा अब,
चाहें न मानें सब, मानेगा पर रब||
पहला प्यार
क्या हुआ है दिल को आज,
इसने बजाया है वही पुराना साज,
जब हमने पहली बार किसी को था दिल दिया,
पर हाय री बेवफ़ा, उसने हमें शायर बना दिया|
प्रेम के प्रकाश से हमारी आँखें थीं चुंधियाई,
इसी जूनून ने हमारी आखरी सांसें थीं निकलवाईं,
उसकी हिरनी जैसी चाल पर थे हम मिटे हुए,
उसकी कातिल मुस्कान पर थे हम फ़िदा हुए|
सुबह-शाम उसके घर के चक्कर हम लगा रहे थे,
लग रहा था उसको भी हम कुछ-कुछ भा रहे थे,
भूख को हमारी उसकी जालिम अदाओं ने था मार डाला,
हमारी नींद का तो उसने जनाजा ही था निकला|
न दिन को चैन, न रातों को आराम,
हमारी जिंदगी तो उसने कर दी थी हराम,
बॉस से झिक झिक, घरवालों की उलाहना,
उसकी मोहब्बत में हम थे हद से गुजर जाना,
आखिर हमने कर ही डाला प्रेम का इजहार,
बदले में उसकी लानतों का मिला हमको हार,
उसकी शादी पहले ही तय हो चुकी थी किसीसे,
हमारा दिल न हो सका संतुष्ट बस इसीसे|
उसेक गम में जाम उठाया, बन गए देवदास,
जीवन जीने की हमारी खो गयी थी आस,
हम तो बस रह गए थे सबके लिए उपहास|
फिर हम झूमे नाचे, किया खूब डांस,
एक परी को दिल दिया, शुरू हुआ रोमांस,
उमंग वापस आई हैं, जिंदगी लाया हूँ मैं बुला,
पर पहले प्यार की याद को क्या मैं सकूंगा भुला?
इंतज़ार
इस पत्र के पटल पर दिल की इबारत है लिखी,
इसी को मेरा प्रेम पत्र समझना तुम सखी|
दो-चार बार जो तुम मुझसे मिली,
दिल के आँगन में कली नई खिली।
नोट्स के बहाने हुए पहली मुलाक़ात,
उसी पल हमने अपना दिल दिया तुम्हारे हाथ।
चांदी के सिक्कों सा तेरा तन,
तेरी खिलखिलाहट और यह चंचल मन।
मेरे इशारों को तू न समझ पायी,
या मेरे खुदा तेरी दुहाई।
दिल की बात कहने की कच्ची है उमर,
पर जब भी कहूँगा तुझे ही कहूँगा ऐ जानेजिगर बन मेरी हमसफ़र।
इस दिल के बहकाने पर न चलूँगा मैं,
प्यार की कसौटी पर खुद को परखूँगा मैं।
हाय हैलो का यह प्रेम नहीं है,
इससे आगे भी न बढ़ सका यह भी सही है।
जब मैं बन जाऊंगा इस काबिल,
कि सकूँगा तेरा हाथ थाम, तभी समझूंगा तुझे अपनी रंगीन शाम।
बस तब तक मेरा इंतज़ार करना,
वरना …