भक् साला
जब दिखी कोई सुन्दर कन्या,
मन मचला सा क्यों जाता है,
जैसे बिन चाबी का ताला,
दिल करे कि बोलूं भक् साला।
उस दिन तो यारों हद हो गयी,
घर का रास्ता ही भटक गया,
कोई वशी-इत्र उसने डाला,
दिल करे कि बोलूं भक् साला।
सब्जी लेने को गया था मैं,
वहां किलो-२ भर तोल रही,
धनिया भी मुफ्त में न डाला,
दिल करे कि बोलूं भक् साला।
सोचा चलो जांच मैं करवा लूँ,
आँखें हैं ठीक, बोली डॉक्टर,
पर चरित्र है तेरा कुछ काला,
दिल करे कि बोलूं भक् साला।
फूलों की टोकरी, रख सर पर,
बेच रही वो, लगा पुकार,
मेरे मन ने बना ली वरमाला,
दिल करे कि बोलूं भक् साला।
सोचा कई बार, त्याग दूँ सब,
आखिर कब तक करूंगा मैं,
मस्ती तफरी, और मधुशाला,
चल हट दिल नौटंकी साला।।
superb………bhak sala………….
Pranay Tandon
September 20, 2014 at 11:55 am
Thnx Pranay
arpitgarg
September 20, 2014 at 6:51 pm