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एक याद पुरानी आयी मुझे

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एक याद पुरानी आयी मुझे,
एक किस्सा भूली बातों का,
जब चाँदनी छन-छन रोशन,
औ गुस्ताखी माफ़ आखों की|

नज़रों के पहरे साफ़ हुए,
चुनरी में लागे दाग हुए,
चादर का कोना ओढे वो,
संग गिनती करते पूरे सौ|

छुप छुप के मिलना सब से,
पहरों का ओझल आँखों में ,
बातें भी ख़तम ना होती थी,
रातें भी सितम न खोती थीं|

उन उलझे उलझे बालों से,
उन लाल लजाते गालों से,
खिड़की पे बैठे सवालों से,
एक याद पुरानी आयी मुझे| |

Written by arpitgarg

August 10, 2020 at 4:17 am

Posted in Hindi, Literary, Poetry

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ऐसा नहीं है

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ऐसा नहीं था कि मुझे कुछ गम था,
पर जीवन में लगता कुछ कम था|
पत्र तो था पर मंजिल थी लापता,
अगले मोड़ पे टकराइगी, क्या था पता||

ऐसा नहीं था कि मैं कोई विश्वामित्र था,
पर तपस्या थी हकीकत, न चल-चित्र था|
इन्द्र की बारिश, ये दिल सह न सका,
जब तन मन तपाने बनी तू मेनका|

ऐसा नहीं था कि कभी मस्ती नहीं थी,
पर अपनी कोई अलग हस्ती नहीं थी|
दौड़ा गयी तू सिरहन, मिली नयी राह,
कट रहा था जीवन, आई नयी चाह|

ऐसा नहीं था कि कोई पगला था मैं,
हाँ समझदारी में थोडा कंगला था मैं|
‘हड़बड़ी कबतक, आदतें सुधारो’, तूने ज्ञान दिया,
ज्यादा नहीं गर थोड़ा तो समझदार किया|

ऐसा नहीं था कि दिल ये पत्थर था,
पर धड़कने को नहीं ये तत्पर था|
मौत के जैसे आई औ जिंदगी दे गयी,
दिल को धड़का, मेरी सांसें ले गयी|

ऐसा नहीं है तू मुझे भाती नहीं,
या सुबह शाम तेरी याद आती नहीं|
सहे हैं दुःख तूने, और दे नहीं सकता,
असमंजस है मेरा, वक़्त ले नहीं सकता|

Written by arpitgarg

August 20, 2011 at 2:45 am

फिर वो पुरानी याद आई

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क्यों रह रह कर आते सपने,
उन पीर परायी रातों के,
क्यों होती है दिल में हलचल,
उन नई पुरानी बातों से,
क्यों जहन में अटकी हैं यादें,
जब गलियों की कच्ची सड़कें,
सावन में पक्की लगती थीं,
जब टूटी सायिकल की गद्दी,
मोटर से मुलायम लगती थी,
जब आंच पे पकती रोटी भी,
जायके में अव्वल लगती थी,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,

वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|

मैदान में वो गिरना पड़ना,
हर बात पे बालक हठ करना,
जो हवा बनाई डींगे हांक,
सब अव्वल बैटिंग देते थे,
जो आड़े आया कोई सो,
अपने सुदबुध में ऐंठे थे,
जो पेड़ सुनहरा गुलमोहरी,
दिनभर हरिया बरसाता था,
वोह बेल हवा में टूट टूट,
और नीम का मस्ती लहराना,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,

वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|

शादी का मौसम सुनते ही,
मुहँ में पानी का आ जाना,
ख्वाब में भी खुरचन लड्डू की,
आपस में कुश्ती करवाना,
और कचौड़ी पूड़ी  से,
घी का टप टप रिसते जाना,
और नहीं, बस और नहीं,
एक और तो लो, तुम्हें मेरी कसम,
भाभी देवर का टकराना,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,

वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|

बीमार था जब, सब याद है अब,
दादी ने नजर उतारी थी,
अलाएँ बालाएं सब टल जाएँ,
इस बात की दुआ पुकारी थी,
दीवाली में पूरे कुनबे का,
मिल जुलकर बाड़ा चमकाना,
कुछ दीपक से, कुछ बत्ती से,
सब ओर प्रकाश का टिम टाना,
सब बच्चों को नगदी मिलना,
बड़ों का आशीर्वाद कहलाता था,
एक सुई, एक धागे में,
सारा संसार पिर जाता था,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,

वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|

हो गई पुरानी सब बातें,
यादें भी धुंधली हो हैं चली,
पर मन जाने क्यों अटका है,
कभी ना जाना, उसी गली,
कभी कभी एक आस जगे,
क्यों ना कल जब सो के उठें,
तो सुबह उन्हीं गलियों में हो,
रात उन्हीं अठखलियों से हो,
पर बीत चुका कब आया है,
बीते की याद ही आई है,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,

वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|

Written by arpitgarg

February 20, 2009 at 7:57 am

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