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ठर्कीपन
बात है उस दिन की, पैदा हुआ था मैं,
सफ़ेद लिबास में पुचकार रही थी वो,
उम्र न देखी, वक़्त न देखा, बस ली फिर्की,
नर्स को ही देखकर हो गया मैं ठर्की|
नर्सरी क्लास का है किस्सा यह,
आगे की कुर्सी पे बैठी थी वो,
खींच दी आहिस्ता से चोटी उसकी,
उसकी नन्ही जुल्फों में उलझा ये ठर्की|
चौथी कक्षा की टीचर जी,
हर बच्चा उन पे मरता था,
कितनों से लड़ा, कितनी तोड़ी बत्तीसी,
ब्लैक बोर्ड की लिखाई ने कर दिया ठर्की|
स्कूल के मास्टर की कोचिंग जाता था,
कुछ अपनापन था वहां, दिल को भाता था,
नंबर अब जो भी दे वो, बेटी भा गयी मास्टर की,
फेल और पास क्या जाने, यह मन तो है ठर्की|
बचपन का दोस्त था जो, एक दिन बोला वो,
नीले दुपट्टे में आई है जो, दिल ले गयी मेरा,
कहने को भाभी होनी थी, पर मर्जी इश्वर की,
समझा लूँगा दोस्त को मैं, न समझे ये दिल ठर्की|
कम्पटीशन का पेपर देने बैठा था, आर या पार,
दो सीट आगे बैठी थी, दिल हुआ बेकरार,
सलेक्श हो जाएगा अगले साल सही,
आज जी भर के देखूं उसको, हो कर ठर्की|
ऑफिस में तो सुधर जा अब, सीधा बन,
शिकायत करेगी, जायेगी नौकरी, होगी कुर्की,
जान दे, दूसरी मिल ही जायेगी नौकरी तो,
आज रोका तो बुरा मान जाएगा दिल ठर्की|
बचपन में सीखा था मैंने,
कैसा भूल गया यह ज्ञान,
अब ना भूलूंगा जीवन भर,
हर दिन जाप करूंगा, जी कर, मर कर|
इश्क में पड़ेगा तो जान से जाएगा,
ऐसा घुसेगा, पानी नहीं पायेगा,
जूतों से पिटवाएगी यह लड़की,
नज़र रख सीधी, मत बन ठर्की||
फिर वो पुरानी याद आई
क्यों रह रह कर आते सपने,
उन पीर परायी रातों के,
क्यों होती है दिल में हलचल,
उन नई पुरानी बातों से,
क्यों जहन में अटकी हैं यादें,
जब गलियों की कच्ची सड़कें,
सावन में पक्की लगती थीं,
जब टूटी सायिकल की गद्दी,
मोटर से मुलायम लगती थी,
जब आंच पे पकती रोटी भी,
जायके में अव्वल लगती थी,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,
वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|
मैदान में वो गिरना पड़ना,
हर बात पे बालक हठ करना,
जो हवा बनाई डींगे हांक,
सब अव्वल बैटिंग देते थे,
जो आड़े आया कोई सो,
अपने सुदबुध में ऐंठे थे,
जो पेड़ सुनहरा गुलमोहरी,
दिनभर हरिया बरसाता था,
वोह बेल हवा में टूट टूट,
और नीम का मस्ती लहराना,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,
वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|
शादी का मौसम सुनते ही,
मुहँ में पानी का आ जाना,
ख्वाब में भी खुरचन लड्डू की,
आपस में कुश्ती करवाना,
और कचौड़ी पूड़ी से,
घी का टप टप रिसते जाना,
और नहीं, बस और नहीं,
एक और तो लो, तुम्हें मेरी कसम,
भाभी देवर का टकराना,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,
वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|
बीमार था जब, सब याद है अब,
दादी ने नजर उतारी थी,
अलाएँ बालाएं सब टल जाएँ,
इस बात की दुआ पुकारी थी,
दीवाली में पूरे कुनबे का,
मिल जुलकर बाड़ा चमकाना,
कुछ दीपक से, कुछ बत्ती से,
सब ओर प्रकाश का टिम टाना,
सब बच्चों को नगदी मिलना,
बड़ों का आशीर्वाद कहलाता था,
एक सुई, एक धागे में,
सारा संसार पिर जाता था,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,
वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|
हो गई पुरानी सब बातें,
यादें भी धुंधली हो हैं चली,
पर मन जाने क्यों अटका है,
कभी ना जाना, उसी गली,
कभी कभी एक आस जगे,
क्यों ना कल जब सो के उठें,
तो सुबह उन्हीं गलियों में हो,
रात उन्हीं अठखलियों से हो,
पर बीत चुका कब आया है,
बीते की याद ही आई है,
क्या दौर था वो, कुछ और था वो,
सुख चैन का बस सिरमौर था जो,
वो समां पुराना चला गया,
कुछ और देर तक रहता फिर,
मिल बैठ के बातें करते हम,
कोई रीत पुरानी गाता में,
कुछ गम मिल जुलकर करते कम|
Munna ki Shaadi
Everyone has some childhood memory which tend to bring smiles. For me it would be “childhood rhymes”. One which I sang the most, enjoyed the most is the, “Munna ki Shaadi”. Try singing it fast, would enjoy better. Also if you can couple it with claps, pleasure would be supreme.