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वो पगला

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सब कहते थे वो पगला है,
नकारा है, एक झल्ला है,
मत उससे मिल, रहना दूर,
सपने सारे हो जायेंगे चूर|

सब कहते थे, आवारा है,
सागर का नहीं किनारा है,
कुछ ना मिलता है इस ओर,
दुःख से रात, दर्द से भोर|

सब कहते थे, वो फ़ोकट है,
जेब में नहीं है एक भी नोट,
क्या खायेगा, क्या खिलायेगा,
खुद हंसेगा, तुझे रुलाएगा|

सब कहते थे, वो बे-दिल है,
प्यार क्या है, नहीं जानता,
जब टूटेगा दिल, तब रोएगी,
पाया है कुछ, ज्यादा खोएगी|

सब कहते थे, तू सुनती थी,
बस सुनती थी, न हरती थी,
सब कहते रहे, बस कहते गए,
तू ख्वाब बुनती रही नए|

माना कि वो थोड़ा पगला है,
नकारा है, एक झल्ला है,
पर उससे न रह पाऊँ में दूर,
अब चाहे सपने ही हों चूर|

सबको लगता वो आवारा है,
सागर नहीं, प्यार का फव्वारा है,
जो कुछ है, वो है इस ओर,
उसी से रात, उसी से भोर|

राजे महाराजे क्या खुश थे,
पैसे से प्यार का क्या है तोल,
रूखा सूखा खा जी लेंगे,
संग हंस लेंगे, संग रो लेंगे|

बे-दिल वो नहीं, दुनिया है,
उसने तो सच्चा प्यार किया,
दिल टूटे अब, या कुछ हो,
पाने खोने का नहीं है मोह|

जब तक तू है साथ मेरे,
दुनिया से लड़ने का है दम,
सब कितना ही अब कहते रहें,
यह प्यार नहीं होगा कुछ कम||

Written by arpitgarg

December 14, 2013 at 3:32 am

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परदेसी

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हवा का झोंका मध्यम-२,
अपने संग ले कुछ उड़ा,
एक गुलाबी पंखुड़ी सा,
फूल नहीं वो ख़त था तेरा।

खिड़की थी खुली हुई ऐसे,
बंद भी न मैं कर पाया,
फुर्ती से तो लपका मैं,
पर कम्बख्त उड़ता ही गया।

पढने को खोला भी न था,
देख-२ ही आहें भर पाया,
थोड़ी देर तो पीछे दौड़ा मैं,
पड़ा खुला मैदान भारी पर।

इतने दिन की आँख मिचोली,
एक चुरायी हुई हसीं,
दिया अचानक मुझको ख़त,
तूने जाने के आखरी दिन।

ख़त के साथ पता भी गया,
ढूंढूंगा तुझको कैसे अब,
किसी पराये शहर मैं,
यही सोच-२ के बैठा हूँ।

पर शायद अच्छा ही हुआ,
परदेसी से प्यार नहीं टिकता,
इस बात से ही खुश हो लूँगा,
आखिर तूने ख़त तो लिखा॥

Written by arpitgarg

September 22, 2013 at 9:47 pm

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सात दिन बरसात के

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भीगी भागी रात थी वो,
घूंघट डाले साथ थी वो,
भूल नहीं मैं क्यूँ पाता,
वो सात दिन बरसात के|
 
असल नहीं वो सूद था बस,
जो मुझे लगा था रब जैसा,
वापस कर दो मुझको अब,
वो सात दिन बरसात के|
 
मुझको होती थी सिरहन सी,
उसकी आँखों की नश्तर से,
खो गए हैं जाने कहाँ गए,
वो सात दिन बरसात के|
 
बारिश की बूंदों का पड़ना,
बिना बात के भी तेरा लड़ना,
छप-छप करती चप्पल जब,
वो सात दिन बरसात के|
 
एक सौंधी सी मट्टी खुशबू,
ठण्ड लगी, सो लगी अलग,
गर्मी करती उसकी सांसें,
वो सात दिन बरसात के|
 
वो बात ना जाने क्या होती,
जो रात जहन में आती थी,
खुस-फुस करती फ़ोन पे तू
वो सात दिन बरसात के|
 
खुशियाँ आयीं बेहिसाब,
गम सारे मेरे हवा हुए,
फिर आयेंगे जल्दी से कब,
वो सात दिन बरसात के||

Written by arpitgarg

September 16, 2011 at 11:01 pm

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रात जवां, अभी ढली नहीं

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नश्तर से नैन तेरे चल जाते,
जब तब, घायल कर जाते,
दिल को मेरे हाय, तब तब,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|

प्यारी सी हँसी, कोमल पंखुडियां,
होठ तेरे, ललचाते मुझको,
शर्म से लाल गाल तेरे,
कितना रोकूँ, तड़पाते मुझको,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|

जब होती है तू उदास, रोता है,
मन मेरा, दुखता अन्दर कुछ मेरे,
मत बहाना कभी तू आंसू,
बहुत कीमती हैं, पूछ मुझसे,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|

जुल्फें तेरी, उलझी सुलझी,
हर वक़्त तेरा जूझना उनसे,
पर जैसी भी हैं, भाता है मुझे,
उंगलियाँ जब फसती हैं मेरी,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|

बचपना तेरा, इतराना, कट्टी,
हंस पड़ता हूँ, बंद आँखें करके,
मेरे छूने से होती सिरहन तुझे,
तुझे परेशां करता मैं हक़ से हूँ,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवान, अभी ढली नहीं|

जाना है तो जा, न पीछा
करूंगा मैं, बस निगाहें मेरी,
रुखसत भी हो गयी जो तू,
अहसास को कैसे ले जायेगी,
कितना भी दूर चली जा,
यह रात लौटकर फिर आएगी||

Written by arpitgarg

September 5, 2011 at 12:30 am

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आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां

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मेरी आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां,
कि नींदों में आती बस अंगड़ाइयां|
लगे है बेगाना कुछ ऐसा जहां,
जैसे ओझिल है रातों को परछाइयां|

पास होकर भी वो दूर जाती रही,
मार ठोकर हमें, मुस्कराती रही|
उसकी लानत में है एक ऐसा मज़ा,
बिना उसके ताने, यह जीवन सजा|

उन बातों की यादें, हैं आती मुझे,
कि रातों कि आहट में खोजूं तुझे|
तेरी मुस्कराहट, एक ऐसा नशा,
उन मदहोशियों में, यह बेबस फसा|

जंगल का राजा, होने दो शेर को,
एक दिन तो खदेड़ा वो भी जाएगा|
अगर पास हो शेरनी,  तेरे जैसी तो,
खदेड़ने पर भी राजा वो कहलायेगा|

ऐ काश, रेत रूकती मेरे हाथ में,
समय को भी थमने को कह पाता मैं|
तो साहिल से कराता में पहचां तेरी,
और चुपके से तुझको सता जाता मैं|

होश वालों को होती नहीं जो खबर,
वो खबर मैं नशे में सुनाता रहा|
रात भर मेघ काले, बरसते रहे,
रात भर गीत, मैं गुनगुनाता रहा|

मेरी आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां,
कि नींदों में आती बस अंगड़ाइयां|
लगे है बेगाना कुछ ऐसा जहां,
जैसे ओझिल है रातों को परछाइयां||

Written by arpitgarg

July 25, 2011 at 10:51 pm

कौन है तू

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रात को आग़ोश में लेने दो,
सुबह को ख्वाब ही रहने दो,
ऐ यार तेरे खुमार में हूँ,
मुझे इस प्यार में डूबा रहने दो|
 
भूख प्यास कोई ना लगती,
सुनता था तो हँसता था में,
पर भूख मरी, जब प्यास मरी जब,
हर पल आहें भरता था में|
 
आँख बचाकर, आँख मिलाना,
अहसासों पर काबू पाना,
सुनने में  ही लगता है,
पर होता नहीं है आसां ये|
 
नींद गयी है, चैन गया है,
तारों की गिनती करता हूँ,
सुबह को कैसे उठ जाऊं में,
रात को सोता कौन सा हूँ|
 
वो पल्लू जो पहिये में अटक गया,
मेरा मन भी उसमें लिपटा  था,
तूने जो फाड़ के फैंका था,
पत्र नहीं वो, दिल था मेरा|
 
माना, किस्मत मेरी खोत्ती है,
पर ज्यादा गुलामी ना होती है,
हाँ कर देगी तो मेरी है,
ना कर दे जो, मर्ज़ी तेरी|
 जीवन का पहिया चलता है,
आगे को, बस आगे को|
 
हसीन सा ख्व़ाब, तू आयी थी,
पर नींद तो टूट ही जाती है,
ओर दिल भी जुड़ ही जाता है,
होगा, किस्मत को जो है मंज़ूर,
कौन हूँ में, कौन है तू ||

Written by arpitgarg

May 11, 2011 at 7:41 pm

इंतज़ार

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इस पत्र के पटल पर दिल की इबारत है लिखी,
इसी को मेरा प्रेम पत्र समझना तुम सखी|

दो-चार बार जो तुम मुझसे मिली,
दिल के आँगन में कली नई खिली।

नोट्स के बहाने हुए पहली मुलाक़ात,
उसी पल हमने अपना दिल दिया तुम्हारे हाथ।

चांदी के सिक्कों सा तेरा तन,
तेरी खिलखिलाहट और यह चंचल मन।

मेरे इशारों को तू न समझ पायी,
या मेरे खुदा तेरी दुहाई।

दिल की बात कहने की कच्ची है उमर,
पर जब भी कहूँगा तुझे ही कहूँगा ऐ जानेजिगर बन मेरी हमसफ़र।

इस दिल के बहकाने पर न चलूँगा मैं,
प्यार की कसौटी पर खुद को परखूँगा मैं।

हाय हैलो का यह प्रेम नहीं है,
इससे आगे भी न बढ़ सका यह भी सही है।

जब मैं बन जाऊंगा इस काबिल,
कि सकूँगा तेरा हाथ थाम, तभी समझूंगा तुझे अपनी रंगीन शाम।

बस तब तक मेरा इंतज़ार करना,
वरना …

Written by arpitgarg

March 28, 2008 at 11:23 am

Posted in Love, Poetry

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